Homeसाहित्यसच मानो तुम प्राणप्रिया हो

सच मानो तुम प्राणप्रिया हो

सच मानो तुम प्राणप्रिया हो

गढ़ें प्रेम की परिभाषा हम,सोम हृदय तुम चन्द्रकला हो।
निशिकांत रजनीगंधा तुम,सुरभित सरोज मधुशाला हो।

मनमीत नवल सुरभित बसन्त,नवगीत इश्क तुम महफ़िल हो।
आओ प्यार का इज़हार मिल,चकोर चकोरी तुम हम दिल हो।

वेलेंटाइन डे आज मुदित मन,दूर सनम पर दिली कशिश हो।
नूर परी लिख रहा इबादत,गुलशन गुलशन खिली कली हो।

अनुपम बन्धन प्रीत मिलन यह,सात जनम अन्तर्धारा हो।
आओ सरगम हृदय मीत हम,अनंत व्योम प्रिय ध्रुव तारा हो।

आओ बैठो साथ हमारे,तुम जीवन सुन्दर आभा हो।
ललित कलित नवसुरभि मिलन मन,मधुरिम चारु पिहू रम्भा हो।

कलकल छलछल प्रेम सरित हिय,प्रियतम प्रवहित मृदु धारा हो।
अभिनव किसलय पादप चितवन,अलिगुंज रम्य मधुशाला हो।

नवमीत प्रीत मुकुलित साजन,रसाल गाल प्रिय मनमुग्धा हो।
बनो कोकिला गा पंचम स्वर,मन मुकुन्द प्रियतम राधा हो।

आ समीप बैठो मीरा मन,हमदम इश्क फॅंसी माया हो।
प्रिय वियोग तड़पा मैं पलपल,करें मिलन सखिहिय छाया हो।

अनाघ्रात तन यौवन सरसिज,काया कुसमित प्रिय पाटल हो।
रजनीगंधा निशिकांत सज,चन्द्रकला सुधा रस भावन हो।

गाओ सजनी विरह गीत मन,गाऍं गाथा प्रीति मुदित हो।
बाॅंटे प्रिय आलिंगन तन मन,नई साँझ नवगीत सृजित हो।

मनमोहन सजनी बैठो अब,रुनझुन पायल मन बहलाओ।
कोमल कुसमित बिम्बाधर मुख,बनो अरुणिमा प्रिय मुस्काओ।

बैठो सजनी पास हमारे,यौवन सरिता में नहलाओ।
इन्द्रधनुष सतरंग हृदय नभ,सावन बरखा तन बरसाओ।

कवि✍ डॉ. राम कुमार झा “निकुंज”

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