बसंत

गीत
वसंत

पीली चूनर ओढ़ धरा अब, चली लुभाने कंत।
कुहुक-कुहुक कर कोयल बोले, आया सखी वसंत।।

आम्र मंजरी की खुशबू से, हुआ सुवासित बाग।
पवन बहे मतवाला होकर, लेकर उड़ा पराग।
फूल- फूल पर बैठे तितली, पाती खुशी अनंत।
कुहुक- कुहुक कर कोयल बोले, आया सखी वसंत।।

कामदेव का वाण चले भी, इसी वसंत के मास।
प्रेम-रंग में डूबी कुदरत, ऐसा है मधुमास।
ऋतुओं का राजा वसंत है, मठ का रहा महंत।
कुहुक- कुहुक कर कोयल बोले, आया सखी वसंत।।

नूतनता की ऋतु है आयी, कुदरत गाती गीत।
खेतों में गेहूँ मिल सरसो, करे नृत्य संगीत।
नफरत के पीले पत्तों का, कर देना अब अंत।।
कुहुक-कुहुक कर कोयल बोले, आया सखी वसंत।।

यह वसंत राधा- कृष्णा का, खेले खूब गुलाल।
अमर प्रेम के रंग में रँगे, वह भी लाले लाल।
कलियाँ भी खिलने को आतुर, जाने राज दिगंत।
कुहुक-कुहुक कर कोयल बोले, आया सखी वसंत।।

पुष्पा पाण्डेय
राँची।

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