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गीतिका

गीतिका
आ गया ऋतु राज झूमी वृक्ष की नव डालियाँ।
गीत जीवन गा रही गेहूँ मटर की बालियाँ।

शीत के जाते यहाँ मौसम सुहाना हो गया,
कूकती है कोकिला पुरवा बजाती तालियाँ।

बाग उपवन खिल उठे हैं धूप सोनिल हो गई,
धुंध कोहरा के मिटे अब स्वेत वर्णी जालियाँ।

फूल कलियों पर भ्रमर गूँजार करते यों दिखे,
तृप्त करते हैं अधर पी प्रेम रस की प्यालियाँ।

हर्ष नव उल्लास से चारों दिशाएँ हैं मगन,
प्रेम बिखराया मदन छाई हुई खुशहालियाँ।

प्रमिला श्री तिवारी

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